पाटा गुरु, डाका गुरु, बाजा गुरु, गोटुल के संस्थापक लिंगो पेन
कोयतोर परम्परा में गीत - संगीत और नृत्य कोयतोर संस्कृति की प्राण हैं, क्यूंकि कोयतोर गीतों में आज भी वही मिठास और प्रेम है जैसे कालांतर में लिंगो पेन ने प्रकृति को महशुस करके गीत - संगीत और नृत्य की रचना किया था। “रे रेला रेला” ये किसी शब्द मात्र नही है ये प्रकृति द्वारा निर्मित एक धुन है जो प्रकृति के अलग – अलग जीव और बूम से निर्मित है जिसे लिंगो पेन ने संगीत में पिरोया है । और आज इस लिए गोंडी परंपरा में लिंगो पेन को संगीत के जनक के रूप में भी याद किया जाता है। लिंगो पेन संगीत साधना में इतनी महारत हासिल कर लिया था की वह एक साथ 18 अलग – अलग वाद्य यंत्र को एक साथ बजा लेते थे और जब लिंगो पेन गीत संगीत के साधना में डूब जाते तो उनके गीत और वाद्य यंत्रो से निकलने वाली मधुर आवाज से लोग मनमुग्ध होकर खो जाते थे।
लिंगो पेन ने आदिकाल में अपने संगीत साधना के लिए 18 प्रकार के वाद्ययंत्र और 18 प्रकार के गीत और 18 प्रकार के धुन की रचना किया था जिसे आज भी अलग – अलग अवसरो में गाया और बजाया जाता है।
लिंगो पेन के 18 वाद्ययंत्र
1. सुलुड
2. कच टेहन्डोड
3. हकुम
4. कुंडीड
5. पर्रा
6. निसान
7. डबर्रा
8. डोल
9. डुमीर
10. तमुर्रा
11. डुसीर
12. चिटकुल
13. हुल्की पर्रा
14. कोटोडका
15. पाय जेना
16. मुयांग
17. नंगोरा
18. मोहिर
लिंगो के 18 गीत ( पाटा )
1. कोला पाटंग
2. सेरता पाटंग
3. तयनाह नामेर पाटंग
5. पेन पाटंग
6. हार पाटंग
7. जतरा पाटंग
8. कोकरेंग पाटंग
9. जोल पाटंग
10. पारयह पाटंग
11. मोकसा पाटंग
12. हात – हामुर पाटंग
13. चिटकुल पाटंग
14. मर्म पाटंग
15. पासके पाटंग
16. सुरोती पाटंग
17. चोला पाटंग
18. चेहर्रे पाटंग
लिंगो के 18 प्रकार के धुन / पाड़ / डाकंग
1. कोलंग
2. हुल्किंग
3. पर्रांग
4. चेहरेंग
5. कुंडीड
6. को को पंडिंग
7. डोल
8. मोकसा
9. सोली
10. सेरता
11. तयनाहनामेर
12. जतरा
13. कोकोरेंग
14. डिटोंग
15. चिटकुल
16. दिवाड़
17. गुटापर्रांग
18. हानाडोल्क
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