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कोयतोरिन मानवों की खोज और आविष्कार में बीज संरक्षित करने की तकनीक

आज से हजारो साल पहले जब कोयतोर मानवों में क्रमिक विकास की प्रक्रिया चल रही थी, उस समय कोयतोर मानवों के बीच कई अद्भुत अविष्कार और खोजे हुईं, उन्हीं खोजो और अविष्कारो ने  कोयतोर मानवों  को विषम परिस्थितियों में भी ज़िन्दा  रखा, फलस्वरूप आज हम आधुनिक युग में हैं।

 


बीज - संरक्षण की कोयतोर तकनीक


कोयतोर समुदाय हमेशा से प्रकृति के क्रिया – कलापों से ही सीखता आया है जो भी  कोयतोर तकनीको की खोज हुई है सारी प्रकृति के नियमों पर आधारित हैं  आज का आधुनिक विज्ञान भी इन्हीं कोयतोर नियमों को स्वीकार करता है।

कोयतोर समुदाय में जब खेती का क्रमिक विकास चल रहा था तभी उसके सामने बीज संरक्षण की एक बड़ी समस्या सामने थी क्योंकि प्रकृति का नियम यह कहता है कि किसी भी जीव में अंकुरण या प्रजनन के लिए एक विशेष वातावरण की आवश्यकता होती है अगर इन नियमों का पालन न हो तो अंकुरण या प्रजनन की क्षमता ख़त्म हो जाती है कोयतोर समुदाय के बीच इस समस्या ने चिपटा, गोरसी, डुसी, डोलंगी आदि को जन्म दिया ये सारी तकनीकें प्रकृति के  नियमों पर ही आधारित हैं ।


चिपटा – 

चपोड़ा चीटियों का घोसला
चपोड़ा चीटियों का घोसला - by facebook
चिपटा - by facebook 

इसे सियाड़ी के पत्ते से बनाया जाता है, जिसे कोयतोरिन भाषा में पाउड़ - आकी कहा जाता है, यह अपने अन्दर के वातावरण को संतुलित बना कर रखता है जिसके कारण इसमें रखे गए बीजों  की अंकुरण क्षमता बनी रहती है चिपटा चपोड़ा चीटियों द्वारा बनाए गए  घोसले के नियमो पर आधारित है इसके अन्दर चीटियों के अंडे सुरक्षित रूप से क्रमिक विकास करके चीटियों में तब्दील होते हैं ।   


गोरसी – 


आपने कई बार अपने घर के किसी कोने में मधुमख्खी की तरह दिखने वाले कीट को घर बनाते हुए देखा होगा, जो आकार में कई तरह के होते हैं इसी तरह घर के आस – पास भी इसी तरह के कीट दिख जाते हैं जो अपने अण्डों और इल्लियों को अलग – अलग आकार के मिट्टी के बनाए कमरों में रखते हैं इसी सिध्दांत पर कोयतोर समुदाय ने  गोरसी को जन्म दिया, जिसके अन्दर बीजों को सुरक्षित रखा जाता है ।